काम का बोझ, घर और ऑफिस को बैलेंस करना, आर्थिक परेशानी, बच्चों की परवरिश और न जाने क्या-क्या। ये सब ऐसी बातें हैं, जो लोगों में तनाव का स्तर बढ़ाती है। जाहिर है, जब तनाव बढ़ेगा, डिप्रेशन होगा, तो स्वास्थ्य खराब होगा, जिससे रात को नींद भी बाधित होगी। आमतौर पर हमें लगता है कि नींद न आना एक सामान्य समस्या है, जिसे अपनी लाइफस्टाइल को मैनेज करके कंट्रोल किया जा सकता है। जबकि, ऐसा नहीं है। नींद न आना, एक गंभीर बीमारी है। इसके कई प्रकार भी हैं। आज हम नींद न आने की बीमारी के पांच प्रकार के बारे में विस्तार से जानेंगे। इस बारे में हमने न्यू दिल्ली स्थित, दी लाइफस्टाइल क्लीनिक की कंसलटेंट साइकिएट्रिस्ट, डॉ. वर्षा महादिक, एमबीबीएस डीएनबी साइकिएट्री से बात की।
इनसोमनिया
इनसोमनिया नींद न आने की यह गंभीर बीमारी है। इनसोमनिया होने पर व्यक्ति को नींद नहीं आ पाती है। यहां तक कि अगर व्यक्ति सो जाए, तो अक्सर देर रात उसकी आंखें खुल जाती है। इस तरह के लोग अक्सर उठने के बाद खुद को थका हुआ महसूस करते हैं। इनसोमनिया के दो प्रकार हैं। ये हैं, इंटरमिटेंट इनसोमनिया और क्रॉनिक इनसोमनिया। मेयो क्लिनिक के अनुसार, "इनसोमनिया से राहत पाने के लिए आपको डॉक्टर से संपर्क करना होगा, उनकी दी हुई दवा समय से लेनी होगी और अपनी लाइफस्टाइल में भी जरूरी बदलाव करने होंगे।"
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स्लीप एप्निया
स्लीप एप्निया भी एक गंभीर नींद न आने की बीमारीर है। इस बीमारी के तहत सोते वक्त मरीज की सांस लेने में तकलीफ होती है। इस स्थिति के कारण, मरीज बहुत जोर-जोर से खर्राटे लेने लगता है। इस दौरान उसे घुटने महसूस होने ल गती है, क्योंकि उसकी सांस अटकने लगती है और ब्रेन तक ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं हो पाती है। ऐसा होने पर अक्सर व्यक्ति की नींद टूट जाती है। परेशानी की बात ये है कि व्यक्ति के साथ ऐसा कई बार हो सकता है। इस बीमारी से बचने के लिए व्यक्ति को अपना मोटापा कम करना चाहिए, नियमित रूप से एक्सरसाइज करना चाहिए और सोने की सही पोजिशन चुननी चाहिए।
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नार्कोलेप्सी
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर एंड स्ट्रोक के अनुसार, "नार्कोलेप्सी एक गंभीर न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है। यह मस्तिष्क के सोने और जगने की क्षमता को प्रभावित करता है। नार्कोलेप्सी के मरीज सोकर उठने के बाद एनर्जेटिक महसूस कर सकते हैं, वहीं कुछ ही क्षणों के बाद उन्हें दोबारा नींद आ सकती है।" इसके लक्षण बहुत सामान्य हैं व्यक्ति खाना खाते-खाते सो सकता है, इन्हें अचानक कहीं भी नींद आ सकती है और अपनी इस स्थिति को ये लोग कंट्रोल नहीं कर पाते हैं। मरीज को नार्कोलेप्सी होने पर डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। इसके अलावा लाइफस्टाइल को भी बहुत सही तरीके से ऑर्गनाइज्ड करना चाहिए। इन लोगों को अपने सोने के लिए छोटे-छोटे नैप टाइमिंग्स सेट करने चाहिए, स्लीप शिड्यूल सेट करना चाहिए, कैफीन से दूर रहना चाहिए और सोने से पहले शराब या नशीली चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।
सर्कैडियम रिदम डिसऑर्डर
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार, "सर्कैडियम रिदम डिसऑर्डर भी एक प्रकार का स्लीप डिसऑर्डर है। यह समस्या होने पर व्यक्ति की इंटरनल बॉडी क्लॉक एफेक्टेड होने लगती है। इस कारण व्यक्ति को यह नहीं पता चल पाता है कि उसे कब सोना है और कब जागना। असल में सर्कैडियम रिदम डिसऑर्डर होने पर व्यक्ति अपने नेचुरल एंवायरमेंट के साथ तालमेल नहीं बैठा पाता है, जिससे उसके सोने का समय बदल जाता है।’ इसर तरह की स्थिति तब होती है, जब व्यक्ति देर रात तक जगता है, देर तक सोता है और शिफ्टिंग जॉब करता है। व्यक्ति को अपनी सर्कैडियम रिदम को सही करने के लिए सही लाइफस्टाइल को मैनेज करना चाहिए।"
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