टीबी संक्रमण के कारण फैलने वाला रोग है, जो आमतौर पर मरीज के फेफड़ों को प्रभावित करता है। इसे ट्यूबरक्युलोसिस, क्षय रोग और तपेदिक भी कहते हैं। टीबी दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी बीमारी है, जिससे हर साल सबसे ज्यादा लोगों की मौत होती है। आंकड़ों के मुताबिक 2015 में दुनियाभर में टीबी के कारण 1 करोड़ 80 लाख लोगों की मौत हुई थी। वहीं हर साल भारत में टीबी से लगभग 28 लाख लोग पीड़ित होते हैं, जिनमें से लगभग 4.2 लाख लोगों की मौत हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन) ने दुनियाभर के देशों को 2030 तक टीबी मुक्त बनाने का लक्ष्य दिया है।
टीबी रोग के फैलने और लोगों की मौत का एक बड़ा कारण लोगों में जानकारी का अभाव है। साथ ही प्रदूषण इस रोग को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। टीबी रोग के बारे में लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए हर साल 24 मार्च को विश्व क्षय रोग दिवस या वर्ल्ड ट्यूबरक्युलोसिस डे मनाया जाता है।
टीबी अर्थात ट्यूबरक्युलोसिस एक संक्रामक रोग होता है, जो बैक्टीरिया की वजह से होता है। यह बैक्टीरिया शरीर के सभी अंगों में प्रवेश कर जाता है। हालांकि ये ज्यादातर फेफड़ों को प्रभावित करते हैं। इसके अलावा आंतों, मस्तिष्क, हड्डियों, जोड़ों, गुर्दे, त्वचा तथा हृदय भी टीबी से प्रभावित हो सकते हैं। क्षयरोग को कई नामों से जाना जाता है जैसे टी.बी. तपेदिक, ट्यूबरकुलासिस, राजयक्ष्मा, दण्डाणु आदि। टी.बी से ग्रस्त व्यक्ति बहुत कमजोर हो जाता है और इसके साथ ही उसे कई गंभीर बीमारियां होने का डर भी रहता है। टी.बी. का खतरा उन लोगों को ज्यादा होता है जिन्हें पहले ही कोई बड़ी बीमारी जैसे- एड्स, डायबिटीज आदि है। इसके अलावा कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों में भी इस रोग का खतरा काफी होता है।
टीबी रोग कई प्रकार के होते हैं। इन्हें इनके लक्षणों और कुछ जांचों के आधार पर चिकित्सक पहचान लेते हैं।
आमतौर पर टी.बी के इस प्रकार को पहचान पाना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि यह अंदर ही अंदर बढ़ता रहता है और जब स्थिति बहुत अधिक गंभीर हो जाती है तभी इस टी.बी. के लक्षण उभरते हैं। फुफ्सीय क्षय रोग किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है। आमतौर पर हर व्यक्ति में फुफ्सीय टी.बी के लक्षण अलग-अलग पाएं जाते हैं। इसमें कुछ सामान्य लक्षण जैसे सांस तेज चलना, सिरदर्द होना या नाड़ी तेज चलना इत्यादि शामिल हैं।
पेट में होने वाले क्षय रोग को पहचान पाना और भी मुश्किल होता है क्योंकि पेट का क्षय रोग पेट के अंदर ही तकलीफ देना शुरू करता है और जब तक पेट के टी.बी के बारे में पता चलता है तब तक पेट में गांठें पड़ चुकी होती हैं। दरअसल पेट के टी.बी के दौरान मरीज को सामान्य रूप से होने वाली पेट की समस्याएं ही होती हैं जैसे बार-बार दस्त लगना, पेट में दर्द होना इत्यादि। इसलिए आमतौर पर लोग इसे नजरअंदाज करते हैं और रोग अंदर ही अंदर बढ़ता रहता है।
हड्डी का क्षय रोग होने पर इसकी पहचान आसानी से की जा सकती हैं क्योंकि हड्डी में होने वाले क्षय रोग के कारण हडि्डयों में घाव पड़ जाते हैं जो कि इलाज के बाद भी मुश्किल से ही ठीक होते हैं। शरीर में जगह-जगह फोड़े-फुंसियां होना भी हड्डी क्षय रोग का लक्षण हैं। इसके अलावा हड्डियां बहुत कमजोर हो जाती हैं और मांसपेशियों में भी बहुत प्रभाव पड़ता हैं।
टीबी से संक्रमित रोगियों के कफ से, छींकने, खांसने, थूकने और उनके द्वारा छोड़ी गई सांस से वायु में बैक्टीरिया फैल जाते हैं, जोकि कई घंटों तक वायु में रह सकते हैं। जिस कारण स्वस्थ व्यक्ति भी आसानी से इसका शिकार बन सकता है। हालांकि संक्रमित व्यक्ति के कपड़े छूने या उससे हाथ मिलाने से टीबी नहीं फैलता। जब टीबी बैक्टीरिया सांस के माध्यम से फेफड़ों तक पहुंचता है तो वह कई गुना बढ़ जाता है और फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है। हालांकि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता इसे बढ़ने से रोकती है, लेकिन जैसे-जैसे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ती है, टीबी के संक्रमण की आशंका बढ़ती जाती है।
टीबी की जांच करने के कई माध्यम होते हैं, जैसे-
इसके अलावा आधुनिक तकनीक के माध्यम से आईजीएम हीमोग्लोबिन जांच कर भी टीबी का पता लगाया जा सकता है। अच्छी बात तो यह है कि इससे संबंधित जांच सरकार द्वारा निःशुल्क करवाई जाती हैं।