क्या सर्दी होने पर लेनी चाहिए एंटीबायोटिक? जानिए सच

कोल्‍ड और फ्लू को हम सामान्‍य बीमारी मानते हैं और इसके उपचार के लिए बिना किसी की सलाह के एंटीबॉयटिक का सेवन करते हैं। बिना ये जानें कि ये फायदेमंद है भी की नहीं। एंटीबॉयटिक कितना फायदेमंद है, इसकी पड़ताल इस लेख में करते हैं।

Gayatree Verma
Written by: Gayatree Verma Updated at: Dec 23, 2016 12:00 IST
क्या सर्दी होने पर लेनी चाहिए एंटीबायोटिक? जानिए सच

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अपनी सेहत को लेकर सतर्क रहना अच्छी बात है लेकिन उसके प्रति ऑब्सेस होना गलत आदत है। ये गलत आदत सबसे अधिक जुकाम और उसके इलाज को लेकर लोगों में होती है। जुकाम में एंटीबायोटिक खाने की सबसे अधिक आदत भारतीयों में होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में ये बात सामने आई है कि 75 फीसदी भारतीय अब भी मानते हैं कि एंटीबायोटिक से जुकाम ठीक होता है। जबकि खतरनाक सुपरबग्स औऱ पोस्ट एंटीबायोटिक युग जैसे एंटीबायोटिक प्रतिरोध के खतरों के बारे में काफी कुछ कहा जा चुका है।

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12 देशों में कराए गए सर्वे

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह रिपोर्ट हाल ही में 12 देशों में सर्वे के बाद तैयार की है। इस सर्वे में भाग लेने वाले तीन चौथाई लोग एंटीबायोटिक प्रतिरोध की गंभीरता के बारे में जानते थे। जबकि इतने ही लोग ये भी मानते थे कि एंटीबायोटिक लेने से जुकाम जैसी मौसमी बीमारियां ठीक हो जाती हैं।

 

पेट के इन्फैक्शन के लिए फायदेमंद

विशेषज्ञ सर्जरी के बाद या पेट के इन्फैक्शन जैसी बैक्टीरिया से होने वाली बीमारियों के लिए एंटीबायोटिक्स देते हैं। जबकि सर्दी और जुकाम, वायरस के कारण होते हैं। ऐसे में एंटीबायोटिक आपकी जुकाम और सर्दी की बीमारी को कम नहीं करती। बल्कि बीमारी को ठीक करने के बजाय एंटीबायोटिक्स लेने से वायरस से होने वाली बीमारियों में भी ले लेते हैं, जिससे वैजाइनल यीस्ट जैसे सुपरबग्स से सुपरइन्फैक्शन होने का खतरा बढ़ जाता है। जबकि बिना जरूरत के एंटीबायोटिक लेने वालों में 1000 में से एक रोगी को गंभीर ड्रग रिएक्शन की वजह से अस्पताल में एडमिट होना पड़ता है।

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भारतीयों को एंटीबायोटिक्स का नशा

भारत में हर छोटी-छोटी बीमारी में एंटीबायोटिक्स लेने का कारण एक तरह से डॉक्टर भी हैं। रिपोर्ट के अनुसार पिछले पांच सालों में भारत में एंटीबायोटिक का इस्तेमाल 6 गुना बढ़ गया है। सर्वे के दौरान लोगों ने बताया कि उन्हें एंटीबायोटिक लेने की सलाह उनके डॉक्टर्स और नर्सों ने दी थी। इन आंकड़ों में सब से ऊंचे दर्जे की एंटीबायोटिक कार्बापेनीम का इस्तेमाल भी शामिल है। जबकि बेहद गंभीर मामलों में ही अंतिम विकल्प के तौर पर कार्बोपेनीम का इस्तेमाल किया जाता है। डब्लू एच ओ के सर्वे में बात सामने आई है कि कई मामलों में डॉक्टर्स भी अपने मरी़जों को एंटीबायोटिक लेने की सलाह दे देते हैं।

 

एंटीबायोटिक्स से होने वाली मौतों की बढ़ रही संख्या

एंटीबायोटिक्स से होने वाली मौतों की संख्या इबोला से मरने वाले लोगों की संख्या से भी अधिक है। सर्वे की माने तो हर साल दुनिया भर में 7 लाख लोग ऐसे इन्फेक्शंस से मर रहे हैं, जिन पर कोई एंटीबायोटिक असर नहीं करती क्योंकि एंटीबायोटिक के इस्तेमाल की आदत उन लोगों के शरीर को पहले से हो गई थी। ऐसे में वैज्ञानिक एंटीबायोटिक्स की एक नई क्लास तलाश रहे हैं। एक पोस्ट-एंटीबायोटिक सर्वनाश हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रहा है।

जबकि इन एंटीबायोटिक को 10 साल पहले ही बैन कर देना चाहिये था। अधिक जरूरत होने पर ही इन एंटीबायोटिक का यूज़ करना चाहिए था। इस स्थिति से बचने के लिए जरूरी है कि इंसान के इम्यूनिटी सिस्टम को मजबूत बनाया जाए। क्योंकि शरीर की इम्यून सिस्टम ही बीमारियों से सबसे पहले रक्षा करती है। साथ ही एंटीबायोटिक के इस्तेमाल से जुड़े नियम व कानूनों को बेहतर बनाने की जरूरत है।

 

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