ज्यादा बिजी रहने वाले मां-बाप के बच्चे हो सकते हैं 'साइकॉटिक डिप्रेशन' का शिकार, ऐसे पहचानें लक्षण

यदि आप अपने बच्चों को ज्यादा समय नहीं देते हैं संभव है कि आगे चलकर बच्चा साइकॉटिक डिप्रेशन से ग्रसित हो सकता है। जानें मनोचिकित्सक की सलाह।

Satish Singh
Written by: Satish SinghUpdated at: Aug 13, 2021 17:13 IST
ज्यादा बिजी रहने वाले मां-बाप के बच्चे हो सकते हैं 'साइकॉटिक डिप्रेशन' का शिकार, ऐसे पहचानें लक्षण

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क्या आप वर्किंग हैं, आपकी पत्नी भी वर्किंग है, आप बच्चे का कहना मानते हैं, बच्चों को जो चाहिए उसे देते हैं, जैसे फेवरेट फूड, खिलौने, महंगे मोबाइल, गेम सिस्टम, क्या आप बच्चों को समय नहीं देते हैं... यदि आप भी इन्हीं पेरेंट्स में से हैं तो सतर्क हो जाइए, क्योंकि इन्हीं आदतों के कारण आगे चलकर आपका बच्चा गंभीर साइजोलॉजिकल डिप्रेशन साइकॉटिक डिप्रेशन से जूझ सकता है। आज कल के दौर में पैरेंट्स बच्चों को दुनिया की हर चीज जिसे खरीदी जा सकती है उन्हें देते हैं, सिवाय समय और प्यार के। इन्ही कारणों से बच्चों में इन दिनों साइकॉटिक डिप्रेशन की बीमारी देखने को मिल रही है। दिल्ली में रहकर एनजीओ चला रही मनोचिकित्सक और चाइल्ड-पैरेंट्स काउंसलर दृष्टि कसाना से बात कर बीमारी के लक्षणों की चर्चा करेंगे ताकि बच्चों के व्यव्हार को नोटिस कर उनकी समस्या को दूर कर सकें।

ग्रामीण बच्चों की तुलना में शहरी बच्चों में ज्यादा लक्षण

मनोचिकित्सक बताती हैं कि गांव की तुलना में शहर के बच्चे इस बीमारी से ज्यादा ग्रसित हो रहे हैं। कारण साफ है, शहर के बच्चे भीड़ में रहने के बावजूद भी अकेले हैं। वहीं ग्रामीण बच्चे कम जनसंख्या के बीच भी अकेले नहीं है। इन्हीं कारणों से बच्चों में साइकॉटिक डिप्रेशन की समस्या देखने को मिल रही है। यह समस्या कोरोना काल में काफी ज्यादा देखने को मिल रही है। क्योंकि कोरोना काल के पहले शहरी बच्चे भी स्कूल जाते थे, दोस्तों के साथ खेलते थे, साथ में ट्यूशन करते थे, इससे वो समाज में रहते थे। लेकिन इन दिनों बच्चे न ही कहीं बाहर जा रा पा रहे हैं न ही कहीं घूमने। ऐसे में शहरी बच्चे इस बीमारी से ज्यादा ग्रसित हो रहे हैं। इसके अलावा पैरेंट्स भी बच्चों को समय नहीं देते हैं। यह समस्या उन बच्चों में ज्यादा देखने को मिलती है, जिसमें मियां-बीबी दोनों ही वर्किंग हैं। इस कारण वो बच्चों को समय नहीं दे पाते हैं। बच्चे घर पर ही अपना ज्यादातर समय बिताते हैं इस कारण उनके मन में तरह-तरह के ख्याल आने लगते हैं। यदि यह ख्याल नकारात्मक हो तो आगे चलकर उन्हें यह समस्या हो सकती है। जबकि ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे दोस्तों के संग खेलते रहते हैं, संयुक्त परिवार होने की वजह से घर के बड़ों की निगरानी में हमेशा रहते हैं। इस वजह से उनमें इस प्रकार की समस्या नहीं होती है।

जानें क्या है साइकॉटिक डिप्रेशन

साइकॉटिक डिप्रेशन मनोरोग से जुड़ी बीमारी है। यदि इस बीमारी का समय पर इलाज न किया गया तो यह काफी गंभीर हो सकती है। बच्चों का भविष्य बर्बाद हो सकता है। मनोचिकित्सक बताती हैं कि बीमारी होने पर बच्चों के मन में नकारात्मक ख्याल आने लगते हैं। वो यह सोचने लगता है कि उससे कुछ नहीं हो पाएगा, वो अपनी लाइफ में सफल नहीं है। इन तमाम नकारात्मक ख्यालों को याद कर वो अंदर ही अंदर घुटे रहता है। यदि बच्चों में इस प्रकार का लक्षण दिखाई दे तो उन्हें डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए। ताकि बीमारी को खत्म किया जा सके। इसमें पैरेंट्स के साथ बच्चों के साथ जो सबसे ज्यादा समय बीता रहा है उन लोगों को काफी सतर्क होने की जरूरत है। ताकि बीमारी के लक्षण दिखते ही एक्सपर्ट की मदद ली जा सके। 

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जाने साइकॉटिक डिप्रेशन होने के मुख्य कारण

मनोरोग विशेषज्ञ बताती हैं कि इस बीमारी के कारण कहीं न कहीं आजकल की लाइफस्टाइल है। यह बात हम सभी को समझना होना चाहिए बच्चे भी कई प्रकार के प्रेशर से जूझते हैं। जैसे कि समय पर होम वर्क करने के साथ पढ़ाई करना। यह भी बड़ा काम है। इसके अलावा न खेल पाने की वजह से वो नकारात्मक सोचने लगते हैं, जो कि गलत है। अगर बच्चे खेलते हैं तो इससे न केवल वो खुश होते हैं बल्कि शरीर थकता है और उन्हें अच्छी नींद आती है। इस वजह से उनके पास व्यर्थ का समय नहीं रहने से वो नकारात्मक सोच नहीं पाते हैं। इसके अलावा कई पैरेंट्स कुछ ज्यादा ही व्यस्त हैं। वो घर से चले जाते हैं और बच्चों को घर की देखभाल करने की बात बोलते हैं। इससे अकेले रहेने से वो ज्यादा ही परेशान होते हैं। यदि पैरेंट्स उनके साथ रहें और प्यार करें तो इससे बच्चे अपने मन की बात को उनसे साझा करेंगे जिससे उन्हें परेशानी नहीं होगी। 

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जानें बीमारी होने पर बच्चों में किस प्रकार के दिखते हैं लक्षण

  • बीमारी से पीड़ित बच्चे अपने ही दोस्तों के प्रति जलन करने लगते हैं
  • हमेशा नकारात्मक ख्याल रखते हैं, खुश नहीं रहते हैं
  • खेलना-कूदना बंद कर देते हैं
  • बच्चे किसी से बात नहीं करेंगे, न पैरेंट्स, न पड़ोसियों, न दोस्तों से
  • बच्चे अकेला रहने के लिए घर में ही अपनी जगह तलाशेंगे
  • बड़ों का सम्मान नहीं करेंगे, ठीक से बात भी नहीं करेंगे
  • बच्चों के व्यव्हार में बदलाव आ जाता है, खुश होने पर जिस प्रकार वो पहले रिएक्ट करते होंगे वैसा नहीं करेंगे
  • छोटी-छोटी बातों पर भाई-बहन या फिर पैरेंट्स सहित अन्य के साथ लड़ेंगे, बिना बात के तेज आवाज में चिल्लाएंगे
  • दोस्तों के साथ खेलने भी नहीं जाएंगे
  • ठीक से पढ़ाई भी नहीं करेंगे
  • खाने पीने में बच्चों का मन नहीं लगेगा
  • बच्चों में चिड़चिड़ापन आ जाता है
  • बिना कारण दुखी रहने लगते हैं
  • किसी से अपनी बाते साझा भी नहीं करते हैं
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इलाज न किया जाए तो बीमारी बढ़ती ही जाती है

साइकोलॉजिकल समस्याएं सामान्य बीमारियों से कहीं ज्यादा गंभीर होती है। यदि इसे नजरअंदाज किया जाए तो यह बढ़ती ही जाती है। यदि बच्चा साइकॉटिक डिप्रेशन से ग्रसित है और उसके लक्षणों को शुरुआती दिनों में न पहचाना गया तो आगे चलकर उनका मनोबल टूट जाता है। वो पूरे आत्मविश्वास के साथ कुछ भी नहीं कर पाते हैं। इसके अलावा वो जो भी काम करेंगे उनके परफॉर्मेंस में भारी कमी आती है। जैसे कि पढ़ाई से लेकर स्पोर्ट्स सहित अन्य प्रकार की एक्टिविटी। 

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बीमारी का ऐसे करें बचाव

इस बीमारी से बचाव के लिए पैरेंट्स के साथ बच्चों के साथ जो ज्यादा समय बीताता है उन्हें गंभीर रहना होगा। मनोचिकित्सक बताती हैं कि यह बड़ों की जिम्मेदारी है कि बच्चों की एक्टिविटी पर नजर रखें। यदि उनमें बताए गए किसी प्रकार के लक्षण दिखाई देते हैं तो आपको डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए। इसके अलावा यह बीमारी न हो इसके लिए कोशिश करें कि जितना संभव हो बच्चों से बात करें। यदि बच्चा आपका कुछ बोलता भी है तो उसकी बातों को अनसुना न करें। बच्चों पर पढ़ाई के साथ किसी भी काम को करने का प्रेशर न बनाएं। बच्चों को खेलकूद के साथ जो वो करना चाहता है उसकी छूट दें। बच्चों को सही व गलत के बारे में बताएं। 

लें डॉक्टरी सलाह

मनोरोग से जुड़ी कोई भी बीमारी काफी घातक होती है। इसलिए जरूरी है कि इसका इलाज करवाना चाहिए। इस बीमारी को यदि नजरअंदाज किया जाए तो दूसरी बीमारियों के ही समान यह बीमारी बढ़ सकती है। इसलिए बीमारी के लक्षण दिखते ही मनोरोग विशेषज्ञ से सलाह लेना चाहिए। आज के समय में बच्चों को महंगे गिफ्ट की बजाय आपके साथ की जरूरत है और आपके प्यार की जरूरत है, जिसपर उनका हक है। 

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