मैक्रोसोमिया की शिकायत नवजात बच्चे में तब होती है, जबकि गर्भवती मां में रक्त में शुगर का लेवल बढ़ने पर गर्भनाल के द्वारा गर्भ में भी शुगर प्रवेश कर जाता है। इस तरह बच्चे के शरीर में अधिक मात्रा में शुगर के पहुंचने पर उसके पैनक्रियाज को ब्लड ग्लूकोज़ को एनर्जी में बदलने के लिए अधिक मात्रा में इंसुलिन का स्राव करना पड़ता है और यह फालतू की एनर्जी बच्चे के शरीर में जमा हो जाता है, जो बच्चे को मोटा कर देता है।
ऐसे मोटे बच्चों में जन्म के समय मांसपेशियों में खिचाव और टूट फूट होने का खतरा बना रहता है। ऐसे बच्चों के पैदा होने में भी परेशानी आ सकती है और संभव है कि जन्म सर्जरी द्वारा हो।
न्यू बेबी के रक्त में चीनी की कम मात्रा, शिशु के जन्म के तुरंत बाद शिशु में हाइपोगलसिमिया या रक्त में चीनी की कम मात्रा होने की शिकायत हो सकती है। ऐसा बच्चों के शरीर में रक्त में शुगर की मा़त्रा बढ़ने के कारण समस्या होती है और इस वजह से बच्चों में श्वास संबंधी तकलीफें होने की संभावना बढ़ जाती है।
बच्चों के शरीर में शुगर के मा़त्रा को सामान्य लेवल में लाने के लिए इन्सुलीन का इंजेक्शन दिया जाना चाहिए और समय पर भोजन भी दिया जाना चाहिए।
जांडिस
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लीवर के सही से काम न करने पर न्यूबार्न बेबी में जांडिस होने की भी संभावना कई गुणा बढ़ जाती है, जवानी में डायबीटीज होने के खतरे भी बढ़ जाते हैं ।
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जन्म के समय जिस बच्चे के मां को जेस्टेनल डायबीटीज की शिकायत थी ऐसे बच्चों को बढ़ने के साथ उनमें टाइप–2 डायबीटीज होने के खतरे भी बढ़ जाते है ।
नवजात बच्चों में मोटापा
जिन गर्भवती मां को गर्भावस्था के समय जेस्टेनल डायबीटीज की शिकायत थी उन्हें मोटे बच्चे होने की संभावना तो रहती ही है, लेकिन संभव है कि ऐसे बच्चे पैदा होने के बाद और भी मोटे हो जायें ।
नवजात शिशु में विकासात्मक समस्याएं
जिन गर्भवती मां में जेस्टेशनल डायबीटीज की समस्याएं होती हैं, हो सकता है कि उनके पैदा होने वाले शिशु में शारीरिक संतुलन की समस्या उत्पन्न हो सकती है और इस वजह से बच्चे खड़े होने और चलने फिरने में काफी ज्यादा समय ले सकते है।
गर्भावस्था के दौरान जेस्टेशनल डायबीटीज से पीडि़त महिलाओं में उत्पन्न होने वाले संभावित खतरे
- शिशु के जन्म के समय गर्भवती महिला का शल्य क्रिया प्रभावित हो सकती है
- जिन महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान जेस्टेशनल डायबीटीज हुआ हो उसे भविष्य में डायबीटीज होने का खतरा बढ़ जाता है। ऐसी महिलाओं को आगे चल कर टाइप–2 डायबीटीज और दुबारा गर्भधारण करने पर जेस्टेशनल डायबीटीज होने की भी संभावना बनी रहती है ।
- गर्भावस्था के दौरान जच्चा में उच्च रक्तचाप की स्थिति से जच्चा और बच्चा दोनों का स्वास्थ्य प्रभावित होने का खतरा बना रहता है।
जेस्टेशनल डायबीटीज के कारण
गर्भावस्था के दौरान शरीर में इंसुलिन की प्रक्रिया अंत: क्रिया करती है। इस कारण से शरीर में रक्त की मा़त्रा में अचानक वद्धि हो जाती है।
जेस्टेशनल डायबीटीज के खतरे
- जिन महिलाओं की उम्र 30 के पार हो गई हो उनमें इस बीमारी के खतरे अधिक होते है ।
- जिन महिलाओं के डायबीटीज के व्यक्तिगत और आनुवांशिक इतिहास हैं, उनमें यह खतरे और अधिक हो सकते हैं ।
- महिलाओं में मोटापा और अधिक वजन होने से भी यह खतरे बढ़ सकते हैं ।
बीमारी के लक्षण
गर्भावस्था के दौरान होने वाले जेस्टेशनल डायबीटीज के कोई विशेष लक्षण नहीं होते हैं, जिसे देखकर इस बीमारी का पता लगाया जा सके। इसे ब्लड टेस्ट द्वारा ही किया जा सकता है, हालांकि कुछ लक्षण इस बीमारी में दिखाई दे सकते है।