मासिक धर्म, महिलाओं के शरीर में होने वाला हार्मोनल परिवर्तन है। जब कोई लड़की किशोरावस्था में पहुंचती है तो उनके अंडाशय इस्ट्रोजन एवं प्रोजेस्ट्रोन नामक हार्मोन उत्पन्न करने लगते हैं। इन हार्मोन की वजह से हर महीने में एक बार गर्भाशय की परत मोटी होने लगती है और वह गर्भधारण के लिए तैयार हो जाता है। इसी बीच कुछ अन्य हार्मोन अंडाशय को एक अनिषेचित डिम्ब उत्पन्न एवं उत्सर्जित करने का संकेत देते हैं। अधिकतर लड़कियों में यह लगभग 28 दिनों के अन्तराल पर होता है। यानि कि सामान्यतः, यदि लड़की डिम्ब के उत्सर्जन (अंडाशय से डिम्ब का निकलना) के आसपास यौन संबंध नहीं बनाती हैं, तो किसी शुक्राणु की डिम्ब तक पहुंच कर उसे निषेचित करने की संभावनाएं नहीं रह जाती हैं। अतः गर्भाशय की वह परत जो मोटी होकर गर्भावस्था के लिए तैयार हो रही थी, टूटकर रक्तस्राव के रुप में बाहर निकल जाती है। इसे मासिक धर्म कहते हैं। चक्र के पहले दिन गर्भाशय की परत के ऊतक, रक्त व अनिषेचित डिम्ब योनि के रास्ते शरीर के बाहर आने लगते हैं। यह मासिक धर्म कहलाता है। 28 दिनों के मासिक चक्र में यह चरण 1 से 5 दिनों तक रहता है। पर यदि किसी का मासिक धर्म 2 दिन जितना छोटा हो या 8 दिन जितना बड़ा, तो इसमें चिंता की कोई बात नहीं है। यह सामान्य है।
हार्मोन्स में बदलाव सिर्फ महिलाओं में ही नहीं पुरुषों में भी होते हैं। चिकित्सकों के मुताबिक कई बार पुरुष भी उन्हीं लक्षणों को महसूस करते हैं जिन्हें रजोनिवृति के दौरान महिलाएं महसूस करती हैं। पुरुषों में रजोनिवृति को एंड्रोपॉज के नाम से भी जाना जाता है। इससे पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन के स्तर में क्रामिक गिरावट देखी जाती है। यह हार्मोन पुरुषों व महिलाओं दोनों में संबंध बनाने की इच्छा बढ़ाता है। ऐसा जरूरी नहीं है कि सभी पुरुषों में रजोनिवृति के लक्षण पाए जाएं। एंड्रोपॉज पुरुषों में उम्र बढ़ने के साथ होने वाले भावनात्मक और शारीरिक परिवर्तन को कहते हैं। उम्र बढ़ने के साथ ही पुरुषों के कुछ विशेष किस्म के हार्मोनों में बदलाव देखे जाते हैं। एंड्रोपॉज को मेल मेनोपॉज, उम्र बढ़ने के साथ एंड्रोजन के गिरने से या वीरोपॉज भी कहा जाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक दरअसल एंड्रोपॉज सही शब्द नहीं है, क्योंकि यह प्रक्रिया मेनोपॉज की तरह सभी पुरुषों में नहीं देखी जाती। न ही यह प्रजनन क्षमता समाप्त होने पर अचानक आ जाती है। यह उम्र बढ़ने के साथ कई पुरुषों में होने वाली सामान्य प्रक्रिया है और यह उम्र बढ़ने के साथ-साथ बढ़ती जाती है।
महिलाओं को पीरियड यानी मासिक धर्म महीने में एक बाहर आता है। यह चक्र सामान्यतया 28 से 35 दिनों की होती है। महिला जबतक गर्भवती न हो जाये यह प्रक्रिया हर महीने होती है। इस चक्र की शुरूआत 8 से 16 साल तक की उम्र में कभी भी हो सकती है। नियमित माहवारी का अर्थ है 28 से 35 दिनों के बीच माहवारी का दोबारा आना। कुछ में माहवारी 3 से 5 दिनों तक रहती है, तो कुछ 2 से 7 दिनों तक। इसके आने के पहले महिला के शरीर में कुछ लक्षण दिखाई पड़ते हैं, उन्हें जानना जरूरी है।
समय से पहले माहवारी होना कोई नयी बात नहीं है। जरूरी नहीं कि हर महीने महावारी उसी दिन हो जिस दिन पिछले पिछले महीने हुई थी। अनियमित पीरियड के दौरान एक चक्र से दूसरे चक्र तक लम्बी हो सकती है, या वे बहुत जल्दी-जल्दी होने लगते हैं। जब महिलाओं में सही ढंग से परिपक्व अंडों का विकास नहीं हो पाता और वे सामान्य रुप से नहीं निकल पाते हैं जैसा उन्हें निकलना चाहिए तो जल्द पीरियड होने की समस्या शुरु हो जाती है। लेकिन कई बार कुछ अन्य कारणों से भी जल्द पीरियड की समस्या हा जाती है। कई बार महिलाओं को तनाव व चिंता के कारण स्ट्रेस हार्मोन पर सीधा असर पड़ता है। जिसके कारण एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन (दो सेक्स हार्मोन) की शरीर में उत्पत्ति पर असर होता है। अगर खून की धारा में स्ट्रेस हार्मोन बढ़ जाता है जिससे आपकी पीरियड की डेट पर असर पडे़गा। कैफीन का ज्यादा सेवन कुछ महिलाओं में जल्दी पीरियड होने का कारण हो सकता है। कॉफी, सोडा, चाय और चॉकलेट का ज्यादा सेवन से महिलाओं में हार्मोन पर असर होता है। कैफीन के ज्यादा सेवन से इस्ट्रोजेन नामक हार्मोन बढ़ जाते हैं जो कि जल्द पीरियड होने की वजह है। कई बार अस्वस्थ खान-पान के कारण शरीर को जरूरी पोषण नहीं मिलते हैं नतीजा वजन बढ़ना, शरीर पर चर्बी जमा होना। अत्यधिक वजन बढ़ने और घटने के कारण भी महिलाओं में यह समस्या देखने को मिलती है।
रजोनिवृत्ति अंडाशय के कार्यप्रणाली के कम/न होने के कारण होता है। चूंकि अंडाशय में सीमित है। एक अंडा प्रत्येक माहवारी चक्र में अपने विकास के दौरान परिवर्तन की प्रक्रिया के लिए एक परिपक्व डिंब या अंडे के रूप से गुजरता है। इस विकास के दौरान, महिला हार्मोन एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन छिपे रहते है। जब अंडाशय में अंडे नही होते, परिपक्व डिंब और हार्मोंस का गठन नही होता और महिला रजोनिवृति में प्रवेश करती है। हालांकि यह अपरिहार्य है, रजोनिवृत्ति की स्थिति भिन्न हो सकती हैं। तो, आप रजोनिवृति रोक नहीं सकते, आप सिर्फ इसे टाल सकते है और लक्षणों की गंभीरता को नियंत्रित कर सकते है।
पीरियड्स के समय अक्सर महिलाओं में गैस्ट्रिक की समस्या बढ़ जाती हैं, जिसकी वजह से भी पेट में तेज दर्द होने लगता है। इससे निपटने के लिए अजवाइन का सेवन बेहद कारगर विकल्प है। ऐसा होने पर आधा चम्मच अज्वाइन और आधा चम्मच नमक को मिलाकर गुनगुने पानी के साथ पीने से दर्द से तुरंत राहत मिल जाती है। वहीं, पीरियड्स के दौरान अजवाइन का चुकंदर, गाजर और खीरे के साथ जूस पीने से भी दर्द से राहत मिलती है।
पीरियड्स में दर्द होने पर अदरक का सेवन भी राहत पहुंचाता है। इसलिए पीरियड्स में दर्द होने पर एक कप पानी में अदरक को बारीक काटकर उबाल लें। अगर स्वाद अच्छा न लगे तो इसमें स्वादानुसार शक्कर भी मिला सकती हैं। अब दिन में तीन बार भोजन के बाद इसका सेवन करें। दर्द में राहत मिलेगी।
पाचन शक्ति को मजबूत बनाने के लिए पपीते का सेवन फायदेमंद होता है। पीरियड्स के दौरान इसका सेवन करने से लाभ होता है। दरअसल कई बार पीरियट्स के दौरान फ्लो ठीक प्रकार से नहीं हो पाता है, जिस कारण महिलाओं को अधिक दर्द होता है। ऐसे में पपीते का सेवन से पीरियड्स के दौरान फ्लो ठीक से होता है जिससे दर्द नहीं होता।
दर्द होने पर तुलसी के पत्ते को चाय में मिलाकर पियें। तुलसी में मौजूद कैफीक एसिड से पीरियड्स के दर्द में आराम होता है। अधिक परेशानी हो तो आधा कप पानी में तुलसी के 7-8 पत्ते डालकर उबाल लें और छानकर उसका काढ़ा लें।
पीरियड्स के दौरान निकलने वाले इस हॉर्मोन के प्रति कई महिलाएं अति संवेदनशील रहती है। यह मानसिक स्थिति को भी प्रभावित करता है। योगाभ्यास के कुछ विशेष आसनों व प्राणायाम से हारमोन की अति संवेदनशीलता कम हो जाती है। इससे विचारों के विकार दूर होते हैं और शरीर पर पड़ने वाले अस्थायी प्रभाव को पूर्ण रूप से कम किया जा सकता है।