टीकाकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके जरिए हमारी बॉडी में बीमारियों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता पैदा करने के लिए एंटीबॉडी का उत्पादन किया जा सके। टीकाकरण से बच्चे में जानलेवा बीमारियों का खतरा कम होता है और इससे दूसरे लोगों में बीमारी के प्रसार को कम करने में भी सहायता मिलती है। देश में हर साल लाखों बच्चे की मौत जीवन के पांचवे वर्ष में प्रवेश करने से पहले ही हो जाती है, जिसकी सबसे बड़ी वजह गंभीर बीमारियां और समय रहते इन बच्चों को टीका न लग पाना है।
विश्व स्वास्थ संगठन द्वारा 24 से 30 अप्रैल तक 'वर्ल्ड इम्यूनाइजेशन अवेयरनस वीक' मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य सभी आयु वर्ग के लोगों को टीकाकरण के विषय में अवगत कराना है। वर्ष 2019 की इम्यूनाइजेशन अभियान की थीम 'प्रोटेक्टेड टुगेदर-वैक्सीन वर्क' रखी गई है।
टीकाकरण जरूरी क्यों है इस बारे में बताते हुए धर्मशिला नारायाणा सुपर स्पेशेलिटी ह़ॉस्पिटल के इन्टरल मेडिसिन के डॉक्टर गौरव जैन ने कहा, ''टीकाकरण संक्रमण के बाद या बीमारी के खिलाफ व्यक्ति की रक्षा के लिए उसके शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाता है। बच्चे कुछ प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता के साथ पैदा होते हैं, जो कि उन्हें स्तनपान के माध्यम से अपनी मां से प्राप्त होती है। यह प्रतिरोधक क्षमता धीरे-धीरे कम हो जाती है, क्योंकि बच्चे की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित होना शुरू हो जाती है। टीकाकरण स्वास्थ्य निवेश के सबसे कम लागत वाले प्रभावी उपायों में से एक हैं। आज टीकाकरण चेचक, हेपेटाइटिस जैसी उन बीमारियों को कवर कर सकता है जिनके खिलाफ हमारे पास कोई प्रतिरक्षा नहीं है।''
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श्रीबालाजी एक्शन मेडीकल इंस्टीट्यूट के सीनियर कंसलटेंट एंड हेड पीआईसीयू डॉक्टर प्रदीप शर्मा ने कुछ महत्वपूर्ण टीकों के बारें में बताया जो कि इस प्रकार हैं,
बी.सी.जी वैक्सीन
टी.बी एक जीवाणुजनित बीमारी है, जो फेफड़ों, दिमाग और शरीर के कई अंगो को प्रभावित करती है। यह रोग टी.बी से पीड़ित व्यक्ति के खांसने या छींकने से फैलती है। बी.सी.जी के टीके के जरिये बच्चें को टी.बी की बीमारी से बचाया जा सकता है। आमतौर पर बच्चों के जन्म लेने के तुरंत बाद उन्हें बैसिले कैल्मेट गुरिन (बीसीजी) के टीके लगाये जाते हैं। क्योंकि यह बच्चों के भविष्य में क्षयरोग के साथ साथ टीबी मेनिनजाइटिस से संक्रमित होने की संभावना को कम करता है।
हेपेटाइटिस ए
यह एक विषाणुजनित रोग है, जो लीवर को प्रभावित करता है। यह रोग दूषित भोजन, पानी या संक्रमित व्यक्ति के सीधे संपर्क में आने की वजह से फैलता है। यह रोग बच्चों में ज्यादा होता है। हेपेटाइटिस वायरस के कारण बुखार, उल्टी और जांडिस की समस्या आती है। इससे बचाव के लिए हेपीटाइटिस ए वैक्सीन का पहला टीका बच्चों को जन्म के 1 साल बाद और दूसरा टीका पहली डोज के 6 महीने बाद लगना अति आवश्यक है।
हेपेटाइटिस बी
हेपेटाइटिस बी रोग के कारण बच्चों के लीवर में जलन और सूजन होने लगती है। इसलिए नवजात शिशुओं को जन्म के बाद पहली डोज, दूसरी डोज 4 हफ्ते बाद और 8 हफ्ते के बाद हेपेटाइटिस बी वैक्सीन तीसरी डोज दी जाती है। यह रोग संक्रमित व्यक्ति के शारीरिक तरल पदार्थों के संपर्क में आने से फैलता है।
डीटीपी
बैक्टीरिया के कारण बच्चों को डिपथीरिया, टेटनस, काली खांसी जैसी गंभीर बीमारियां हो जाती हैं। इन बीमारियों से निजात के लिए बच्चों को जन्म के 6 हफ्ते बाद डीटीपी का पहला टीका और इस टीके के 4 हफ्ते बाद दूसरा, बाद में 4 हफ्ते के अंतराल पर तीसरा और चौथा टीका 18 महीने और पांचवा टीका 4 साल के बाद लगवाना चाहिए।
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रोटावायरस वैक्सीन
रोटावायरस मुख्य रूप से तीन माह से लेकर दो साल की उम्र के बच्चों को प्रभावित करता है। रोटावायरस से संक्रमित बच्चों को बुखार, पेट में दर्द के साथ उल्टी और पतले दस्त होते हैं। रोटावायरस वैक्सीन की पहली वैक्सीन ब्रांड रोटाटैग बच्चे के जन्म के 2 महीने, 4 महीने और 6 महीने का होने पर तीन बार यह वैक्सीन पिलाई जाती है और दूसरी ब्रांड रोटारिक्स की दो डोज में से एक बच्चे के 2 महीने और दूसरी डोज 4 महीने का होने पर दी जाती है।
टायफॉइड वैक्सीन
टायफाइड फीवर एक बैक्टीरियल इंफेक्शन है जो दूषित भोजन, पानी और पेय पदार्थ के सेवन से होता है। इसके कारण डाइरिया हो जाता है। इसके बाद ये बैक्टीरिया आंत में चले जाते हैं और खून में प्रवेश कर जाते हैं। जिससे व्यक्ति बीमार हो जाता है। इसके लिए बच्चों को टाइफॉइड वैक्सीन का पहला टीका बच्चा होने के 9 महीने बाद और दूसरा टीका इसके 15 महीने बाद लगवाना चाहिए।
पोलियो वैक्सीन
पोलियो का विषाणु दिमाग और मेरुदंड पर हमला करता है, जो लकवे का कारण बन सकता है। यह बीमारी संक्रमित व्यक्ति के मल, बलगम या थूक के संपर्क में आने से फैलता है। इन बीमारियों से निजात के लिए बच्चों को जन्म के 6 हफ्ते बाद पोलियों का पहला टीका और इस टीके के 4 हफ्ते बाद दूसरा, बाद में 4 हफ्ते के अंतराल पर तीसरा और चौथा टीका 18 महीने और पांचवा टीका 4 साल के बाद लगवाना चाहिए।
टीडीएपी
काली खांसी एक संक्रामक बीमारी है। अगर यह किसी व्यक्ति को हो जाए तो यह उसके लिए खतरनाक है ही लेकिन यह छोटी बच्चों में भी स्थानतरित हो जाती है। इसलिए टीडीएपी नामक वैक्सीन तैयार की गई है जो तीन गंभीर बीमारियों हैटेटनस, डिप्थीरिया से बचाव करती है। बच्चे के जन्म के 7 साल बाद इसका टीका लगाया जाता है।
एमएमआर वैक्सीन
बच्चों में मीज़्ल्स ख़सरा, मम्प्स गलगंड रोग, रूबेला हल्का ख़सरा हो जाता है। इन बीमारियों के होने पर कान में इंफेक्शन, डायरिया, फीवर, कफ़, मांसपेशियों में दर्द, न्यूमोनिया, ब्रेन डैमेज, डीफनेस, मिसकैरिज और डिफनेस आदि समस्याएं हो सकती हैं। इसके लिए बच्चों को जन्म के 9 महीने में एमएमआर का पहला टीका और इसके 15 महीने में दूसरा टीका लगाना जरूरी है।
इन्फ्लूएंजा वैक्सीन
यह फ्लू बैक्टीरिया के कारण होता है। बच्चो को दस्त एंव उल्टी होना, थकान महसूस होना, थकान होना इसके मुख्य लक्षण है। इन्फ्लूएंजा का टीका 7 महीने को बच्चे को लगाया जाता है। जिन लोगों को फ्लू की समस्या अधिक होती है उन्हें यह टीका नियमित रूप से लगाया जाता है।
नारायाणा सुपर स्पेशेलिटी ह़ॉस्पिटल के सीनियर कंसलटेंट इन्टरनल मेडिसीन डॉक्टर सतीश कौल ने टीकाकरण में सावधानी के बारे में बताते हुए कहा, "बच्चों का टीकाकरण अच्छे अस्पताल में ही करवाना चाहिए। टीकाकरण करवाने से पहले टीके की एक्सपायरी डेट जरूर देख लें, क्योंकि एक निश्चित समय के बाद टीका खराब हो जाता है, जिससे बच्चे की सेहत को नुकसान हो सकता है। टीकाकरण के बाद बच्चों में हल्के फुल्के लक्षण जैसे बुखार, दर्द, सूजन इत्यादि लक्षण दिखना आम बात है, इससे घबराने की आवश्यकता नहीं है।"
उन्होंने कहा, ''टीकाकरण के बाद अगर बच्चे का रोना न रूके, बच्चा लगातार रोए बुखार तेज हो, दर्द और सूजन बहुत ज्यादा नजर आए तो तुरन्त डॉक्टर से संपर्क करें। इंजेक्शन लगने के बाद बच्चों में इंजेक्शन वाली जगह पर सूजन और लाली हो सकती है, उस जगह पर गांठ भी बन जाती है जो कुछ सप्ताह बाद अपने आप ठीक हो जाती है।''
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