मौसम बदल रहा है और दिन सुहाना हो रहा है। ज़्यादातर लोगों के लिए सर्दियों का मौसम ढ़ेर सारे मोटापे एवं वज़न बढ़ाने वाले भोजन इत्यादि से भरा हुआ था। और यह भी हमें तभी महसूस होता है जब हमारे कपड़ों की परतें कम होने लगती हैं। और इस बात में भी कोई दो राय नहीं की सर्दियों में खूब खाने से और कम कसरत करने से हमें शर्मिंदगी भी महसूस होती है।

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सर्दियों के बाद बढ़ा मोटापा कम करने के लिए अपनाएं ये 5 टिप्‍स, शरीर की गंदगी भी होगी साफ

मौसम बदल रहा है और दिन सुहाना हो रहा है। ज़्यादातर लोगों के लिए सर्दियों का मौसम ढ़ेर सारे मोटापे एवं वज़न बढ़ाने वाले भोजन इत्यादि से भरा हुआ था। और यह भी हमें तभी महसूस होता है जब हमारे कपड़ों की परतें कम होने लगती

Atul Modi
Written by: Atul ModiUpdated at: Apr 02, 2019 15:32 IST
सर्दियों के बाद बढ़ा मोटापा कम करने के लिए अपनाएं ये 5 टिप्‍स, शरीर की गंदगी भी होगी साफ

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मौसम बदल रहा है और दिन सुहाना हो रहा है। ज़्यादातर लोगों के लिए सर्दियों का मौसम ढ़ेर सारे मोटापे एवं वज़न बढ़ाने वाले भोजन इत्यादि से भरा हुआ था। और यह भी हमें तभी महसूस होता है जब हमारे कपड़ों की परतें कम होने लगती हैं। और इस बात में भी कोई दो राय नहीं की सर्दियों में खूब खाने से और कम कसरत करने से हमें शर्मिंदगी भी महसूस होती है। पर, कोई बात नहीं। इसी विषय पर बात करने आज आपके सामने स्वामी परमानन्द प्राकृतिक चिकित्सालय की डॉक्टर दिव्या शरद आपको काफी कारगर टिप्स दे रही हैं। अनजाने में एवं स्वाद के चक्‍कर में खाए गए कई भोजन इत्यादि आपको गंभीर रूप से बीमार और अस्वस्थ कर सकते हैं। इसीलिए यहां हम आपको एक्‍सपर्ट सर्दियों के बाद डीटॉक्सीफिकेशन की सलाह देते हैं।

 

डीटॉक्सीफिकेशन क्‍या है

वैसे तो डीटॉक्सीफिकेशन आप हर बदलते मौसम में ले सकते हैं, परन्तु वसंत ऋतु में लेने का मुख्य कारण है कि दो मुख्य मौसम (सर्दी एवं गर्मी) में लिए जाने वाले भोजन में अचानक बदलाव होना। इसके चलते कईं बीमारियों का आह्वान हो जाता है। इन्ही सब रोगों से मुक्ति पाने के लिए एवं रोग प्रतिरोधक शक्ति पाने के लिए डीटॉक्सीफिकेशन का अहम योगदान है। 

भारतीय लोगों की स्वास्थ्य को ध्यान में रखा जाये, तो सर्दियों के मौसम में अक्सर लोग बहुत ज़्यादा मात्रा में तेल एवं कार्बोहाइड्रेट वाले भोजन करते हैं एवं आए दिन इसी प्रकार का भोजन करने से उनका स्वास्थ बिगड़ जाता है जो कि उन्हें भी नहीं पता होता। सर्दियों के भोजन में लिए गए अधिक घी और तेल से त्वचा में चिकनाहट रहती है, परन्तु वहीं जब मौसम में गर्माहट आती है तो शरीर कम चिकनाहट वाले पदार्थ मांगता है। अचानक घी और तेल कि कमी के कारण कईं लोगो को त्वचा से मिलती जुलती तकलीफों का सामना करना पड़ता है। इनमे से एक त्वचा का ढीला पड़ना और सूखा पड़ना भी है।

एन्वाइरनमेन्टल वर्किंग ग्रुप की एक स्टडी के मुताबिक एक शिशु की गर्भनली में 287 जाने माने टॉक्सिन्स पाएं गए थे। इससे हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि हम लोग कितना खतरों से घिरे हुए हैं। योगिक संस्कृति में यह माना जाता है कि हमें मौसमी फल एवं सब्ज़ियां खानी चाहिए। परन्तु जब मौसम बदलता है तब शरीर को उसके हिसाब से ढलने में समय लग जाता है। और इस ढलने के दौरान कुछ बचा-खुचा भोजन जो आपके पेट, नली इत्यादि में रह जाता है, वह समस्याएं कर सकता है।

वैसे तो एक डीटॉक्स साइकिल हर एक या दो महीने में करवा लेनी चाहिए, परन्तु आज कल कि जीवन शैली देखते हुए यह हर बदलते हुए मौसम के दौरान ले सकते हैं।

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क्यों वसंत ऋतु डीटॉक्सीफिकेशन के लिए सबसे सही ऋतु है:

  • बाहर का तापमान बढ़ने लगता है, साथ ही शरीर पसीना छोड़ता है, जिसके चलते डीटॉक्सीफिकेशन में काफी असर प्राप्त होता है।
  • काफी मात्रा में आर्गेनिक फल व सब्ज़ियां बाज़ारों में उपलब्ध होने लग जाता है जैसे कि तरबूज़ इत्यादि।
  • जब बाहरी तापमान बढ़ने लगता है, तब हमारा शरीर अपने आप डीटॉक्स मोड में आ जाता है।
  • नई तरह के फल इत्यादि मार्किट में उपलब्ध हो जाते हैं जो डीटॉक्सीफिकेशन में अधिक सहायता करते हैं।

कुछ जानी मानी आयुर्वेदिक थेरेपी जो आपको अवश्य लेनी चाहिए:

पंचकर्म: आयुर्वेद की बहुत प्राचीन एवं कारगर तकनीक जिसमे पाँच प्रकार की क्रियाओं से डीटॉक्सीफिकेशन होती है। पंचकर्म में तीन प्रकार के दोषों को संतुलित करने का प्रयास करा जाता है। अतः वसंत ऋतु डीटॉक्सीफिकेशन के लिए एक असरदार समय है।

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