बड़े तो घर की सभी जिम्मेवारी उठाते हैं, घर का राशन से लेकर ऑफिस का तनाव तक। बच्चों की छोटी-मोटी जरूरत से लेकर परिवार की जिम्मेदारी तक। इस उम्र के लोगों में तनाव, टेंशन आदि की समस्या आम बात है। लेकिन बच्चे जिनके लिए पढ़ाई व खेलकूद जरूरी है, जो मस्त होकर हर काम को करते हैं उनमें मानसिक बीमारी, इसे सभी लोग स्वीकार तक नहीं कर पाते। कई बड़े लोगों को यह लगता ही नहीं कि बच्चों को किसी भी बात का टेंशन तक हो सकता है या फिर वो किसी मानसिक बीमारी से जूझ रहे हैं। मौजूदा समय में बच्चे घरों में कैद हैं। एक ओर पैरेंट्स उन्हें कोरोना की वजह से बाहर खेलने की इजाजत नहीं देते, दूसरी ओर ऑनलाइन पढ़ाई का प्रेशर बच्चों पर काफी ज्यादा रहता है। यह परिवार के बड़े सदस्यों की जिम्मेदारी है कि वो बच्चों के मानसिक स्थिति को समझें और उन्हें सपोर्ट करें। इस आर्टिकल में हम बच्चों में एंजायटी डिसऑर्डर की समस्या पर चर्चा करेंगे। दिल्ली में रहकर एनजीओ चला रही व चाइल्ड स्पेशलिस्ट और चाइल्ड-पैरेंट्स काउंसलर दृष्टि कसाना से बात कर बीमारी के लक्षणों की चर्चा करेंगे ताकि बच्चों के व्यव्हार को नोटिस कर उनकी समस्या को दूर कर सकें।
क्या है एंजायटी डिसऑर्डर
बच्चों को एंजायटी डिसऑर्डर होने से उनमें कई प्रकार के बदलाव देखने को मिल सकते हैं। जिसमें बच्चों में सामान्य से अधिक डर और चिंता साफ तौर पर नजर आती है। इसके अलावा उनमे कई अन्य प्रकार के बदलाव भी नजर आते हैं। जैसे कि बच्चों का व्यव्हार बदल जाता है, सामान्य दिनों की तरह लोगों से बात नहीं करते, ठीक से सो नहीं पाते हैं, खाने-पीने के साथ उनके मूड में बदलाव नजर आता है।
एकाएक बच्चों ने काफी कुछ बदलते हुए देखा, यह भी एंजायटी की बड़ी समस्या
अभी का माहौल तो सबके लिए परेशानी भरा है, लेकिन बच्चों के लिए यह समय कुछ ज्यादा ही चैलेंजिंग है। बच्चों को पहले बाहर खेलने के लिए, समय पर स्कूल जाने के लिए, दूसरों से बातचीत करने के लिए बोला-सिखाया जाता था, लेकिन एकाएक उन्हें यह तमाम चीजें नहीं करने के लिए प्रेशर बनाई गई। जिसका उनपर काफी ज्यादा असर हुआ है। इन्हीं कारणों से कई बच्चे एंजायटी डिसऑर्डर की समस्या से ग्रसित हुए हैं। चाइल्ड स्पेशलिस्ट और चाइल्ड-पैरेंट्स काउंसलर दृष्टि कसाना बताती हैं कि इन तमाम बदलाव की वजह से बच्चे भ्रमित हो गए हैं, खेल नहीं पा रहे हैं, सोने के तरीके में बदलाव आ गया है। इस परिवर्तन को लेकर बच्चों के दिलों में कई तरह के सवाल हैं, लेकिन इसका न तो पैरेंट्स के पास जवाब है और न ही टीचर्स के पास। ऐसे में पैरेंट्स को बच्चों के साथ खुलकर बात करनी होगी, ताकि वो अपने तकलीफों को शेयर करें
माहौल भी है काफी जिम्मेदार
चाइल्ड और पैरेंट्स काउंसलर दृष्टि कसाना बताती हैं कि पहले बच्चे रोजाना क्लास जाते थे, गेम खेलते थे, पैरेंट्स सहित अन्य लोगों से मिलते थे। इन तमाम कारणों से उनका कॉन्फिडेंस लेवल बढ़ता था। बच्चे दिनभर में कई लोगों से मिलते थे, उनका समाजीकरण होता था और उन्हें काफी कुछ सीखने को मिलता था। लेकिन अब यह तमाम संपर्क टूट चुके हैं, ऑनलाइन क्लासेस के बाद दिनभर में घर में मां-पिता, भाई, बहन के साथ ही बीतता है। वहीं उन बच्चों के लिए परेशानी काफी अधिक है जो सिंगल चाइल्ड हैं। ऐसे बच्चे तो पैरेंट्स से भी ज्यादा बात नहीं कर पाते। इन दिनों बच्चों के बढ़े स्क्रीन टाइम की वजह से कई नई परेशानियां सामने आई है, जिसमें एंजायटी डिसऑर्डर भी है। जो काम फेस-टू-फेस हो सकता था उसी काम के लिए कंप्यूटर-मोबाइल आदि का सहारा लेना पड़ रहा है।
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बच्चों में आ रहे हैं इस प्रकार के परिवर्तन, यह हो रही दिक्कत;
- बच्चों में कंफ्यूजन काफी बढ़ा है
- स्लीपिंग पैटर्न में परिवर्तन आया है
- समाजीकरण कम हुआ है
- बच्चों के आत्मविश्वास में कमी आई है
- सीखने की क्षमता कम हुई है, पहले बच्चे क्लास में अपने दोस्तों को देखकर, तो कई बड़ों को देखकर सीखते थे, अब ऐसा नहीं हो रहा है
- धीरे-धीरे नया करने, क्रिएटिव सोचने की क्षमता कम हो रही है
- ऑनलाइन पढ़ाई, होम वर्क से बच्चे चिड़चिड़े हो गए हैं
- घर में रहकर बोर हो चुके हैं
बच्चों के इन लक्षणों को पहचानें
यह बड़ों और पैरेंट्स की जिम्मेदारी है कि बच्चों में एंजायटी के लक्षणों को पहचानें। जब बच्चा किसी बात पर अड़ा रहे, बड़ों का कहना न माने और रोने के साथ उदास रहे तो समझें कि बच्चा परेशान है, कोई बात छुपा रहा है। कई बार बच्चा बात करने से या फिर बड़ों द्वारा कहे गए काम को करने से मना तक कर देता है। बच्चों में कई अन्य लक्षण भी देखने को मिल सकते हैं, जिसे बड़े समझ ही न पाएं। जैसे कि डरा हुआ, चिंतित, नर्वस होना आदि।
एक्सपर्ट बताते हैं कि इस समस्या की वजह से बच्चा सिर्फ मानसिक रूप से ही परेशान नहीं होता बल्कि शारिरिक रूप से भी उसमें काफी बदलाव आता है। जैसे कि वो अस्थिर, चिड़चिड़ा होने के साथ सांस लेने में परेशानी आ सकती है। पेट में अजीब एहसास होना, चेहरा गर्म होना, हाथ से पानी आना, मुंह सूखना और दिल का जोर-जोर से धड़कना आदि शामिल है।
शरीर में इस प्रकार का बदलाव बच्चों की सेहत के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। ऐसे में जरूरी है कि स्थिति और गंभीर न हो उससे पहले डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए। यदि उपचार न किया तो हार्ट रेट, सांस, मसल्स, नर्वस और डायजेशन से जुड़ी समस्या हो सकती है। इन तमाम लक्षणों को देखकर समस्या से बचाव के इंतजाम करने चाहिए।
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ऐसे कर सकते हैं बच्चों की मदद
- एक्सपर्ट बताते हैं कि यदि आपको पता चल जाए कि आपका बच्चा एंजायटी की समस्या से ग्रसित है तो उस स्थिति में आपको यह कदम उठाने चाहिए, जैसे;
- एक अच्छे थैरेपिस्ट की तलाश कर आप अपने बच्चे को उनके पास ले जाए व इलाज करवाएं
- थैरेपिस्ट से बातकर बच्चे की जरूरत के अनुसार ही पैरेंट्स कदम उठाए
- बच्चे का डर अंदर से निकालने में पैरेंट्स मदद करें, इसके लिए आप थैरेपिस्ट की सलाह ले सकते हैं, बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ाएं ताकि डर और परेशानियों से बाहर निकल सकें
- बच्चे की मदद करें और उनकी फीलिंग्स के बारे में खुलकर बात करें, उनके मन की बात का मजाक न बनाएं, समझें और उन्हें प्यार दें और खुलकर स्वीकर करें
- बच्चे को धीरे-धीरे ही सही छोटे कदम बढ़ाने के लिए प्रेरित करें, बच्चे को हार न मानने दें
- धैर्य रखें, बच्चों को सपोर्ट करें और उन्हें बेहतर महसूस करने के लिए कोशिश करें
बच्चों की मनोभावना को समझ सपोर्ट करें
पैरेंट्स की कोशिश यही होनी चाहिए कि बच्चों के व्यव्हार में किसी प्रकार का परिवर्तन आए तो उनकी मदद करें। लक्षणों को पहचान कर समय पर डॉक्टरी सलाह या फिर एक्सपर्ट की सलाह लें। यह दौर सभी लोगों के लिए चुनौतीपूर्ण है। बच्चे अपनी बातों को खुलकर नहीं बता पाते, ऐसे में पैरेंट्स की जिम्मेदारी है कि उनकी जरूरत को समझें।
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