ट्यूबरक्‍युलोसिस का 100 फीसदी इलाज हुआ संभव, हर साल बचेगी 30 लाख लोगों की जान

टीबी एक खतरनाक बीमारी है, जिससे हर साल दुनिया भर में लगभग 9 मिलियन लोग ग्रसित होते हैं। उनमें से सिर्फ भारत में कुल 32 प्रतिशत लोगों में यह बीमारी पाई जाती है। इसके इलाज में अरबों डॉलर खर्च हो जाते हैं।

सम्‍पादकीय विभाग
Written by: सम्‍पादकीय विभागUpdated at: Jul 17, 2019 16:12 IST
ट्यूबरक्‍युलोसिस का 100 फीसदी इलाज हुआ संभव, हर साल बचेगी 30 लाख लोगों की जान

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टीबी या ट्यूबरकुलोसिस एक संक्रामक रोग है, यह संक्रामक बनने से पहले बहुत दिनो तक निष्क्रिय रहता है। पर समस्या यह है कि बहुत से लोगों को यह भी नहीं पता होता है कि उन्हें इन्फेक्शन भी हो सकता है। मैक्रोफेज नामक सफेद रक्त कोशिकाएं अन्य संक्रमणों की तरह ही, ट्यूबरक्‍युलोसिस बैक्टीरिया से भी लड़ता है। लेकिन इस मामले में यह बैक्टीरिया को मारने के बजाय, इसके चारों ओर एक थैली के आकार में ढांचा बनाता है जिसे ग्रेन्युलोमा कहा जाता है। इसकी मौजूदगी से बैक्टीरिया काफी समय तक निष्क्रिय रहता है। 

 

लेकिन शारीरिक कमजोरी या एचआईवी जैसी दूसरी बीमारी के कारण, जब आपकी बीमारियों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है तब वो थैली फट सकती है। ऐसा होने पर ट्यूबरक्‍युलोसिस संक्रमण बाहर निकल जाता है और आपके शरीर पर गहरा असर पड़ता है।

ट्यूबरक्‍युलोसिस कैसे ठीक होगा?

सीएसआईआर-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल बायोलॉजी, बोस इंस्टीट्यूट ऑफ कोलकाता और जादवपुर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की एक टीम ने बताया है कि मनुष्य के शरीर में मौजूद मैक्रोफेज की थैलियों से ट्यूबरक्‍युलोसिस संक्रामक कैसे बाहर निकलता है। यह एक ऐसा शोध है जिसे दुनिया भर के शोधकर्ता वर्षों से अध्ययन कर रहे हैं।

उन्होंने बताया कि बैक्टीरिया MPT63 नामक प्रोटीन को शरीर से निकाल देता है और ट्यूबरक्‍युलोसिस फैलने में एक अहम भूमिका निभाता है। कभी-कभी इन प्रोटीन संरचनाओं में परिवर्तन भी हो जाता है। वही जहां पहले इनका कोई काम नहीं था, वह अचानक मेजबान कोशिकाओं यानी मैक्रोफेज के लिए जहरीला बन जाता है। यह कोशिकाओं को नष्ट कर शरीर में बैक्टीरिया फैला देता है।

आईआईसीबी में स्ट्रक्चरल बायोलॉजी एंड बायोइनफॉरमैटिक्स डिवीजन के प्रमुख और टीम लीडर डॉ कृष्णानंद चट्टोपाध्याय ने साइंस वायर को बताया कि उनकी टीम अब ट्यूबरक्‍युलोसिस बेसिलस में इन निष्कर्षों का प्रयोग करने की कोशिश करेगी और देखेगी कि क्या इसका उपयोग नए चिकित्सीय हस्तक्षेपों को विकसित करने के लिए किया जा सकता है या नही।

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इस खोज के माध्यम से शोधकर्ता अब MPT63 प्रोटीन के प्रभाव को कम करने के तरीकों को देखना शुरू कर सकते हैं, इससे ट्यूबरक्‍युलोसिस को स्थायी रूप से रोक सकते हैं और लाखों क्षय रोगियों की जान बचा सकते हैं। शोधकर्ताओं की टीम में अचिंटा सन्निग्रही, इंद्राणी नंदी, सयंतनी चैलेंज, जुनैद जिब्रान जावेद, अनिमेष हलदर, सुब्रत मजुमदार और सनत करमाकर शामिल थे।

जो भी जांच बचे हुए हैं उन्हें खत्म करने के बाद, उनके परिणाम को एसीएस केमिकल बायोलॉजी जर्नल में प्रकाशित किए जाएंगे।

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