टीबी का ईलाज

ट्यूबरकुलोसिस (टी.बी) भी ऐसी ही एक प्रमुख सावर्जनकि स्वास्थ्य समस्या है।

 ओन्लीमाईहैल्थ लेखक
Written by: ओन्लीमाईहैल्थ लेखकUpdated at: Mar 23, 2012 11:07 IST
टीबी का ईलाज

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भारतीय आबादी के बारे में एक कहावत बहुत प्रचलित है कि यहां बीमारी से ज्यादा लोग बीमारी की अनभिज्ञता से मरते हैं। ऐसी कई बीमारियां है जिनका आज सफल इलाज संभव है और सरकार की ओर से इनका इलाज और दवा मुफ्त मुहैया है फिर भी लोग अज्ञानतावश इन रोगों का शिकार हो असमय ही काल के गाल में समा जाते है। ट्यूबरकुलोसिस (टी.बी) भी ऐसी ही एक प्रमुख सावर्जनकि स्वास्थ्य समस्या है। यह मौत का प्रमुख कारक रहा है। इस रोग के कारण होने वाली विशाल समस्या से हाल के सांख्यिकी ने हमें जागरुक किया है। मगर आम लोगों में इसके इलाज और दवाओं के बारे में सूचनाओं की कमी है।

भारतवर्ष में टीबी एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या है। टीबी रोगियों का करीब एक तिहाई वैश्विक बोझ भारतवर्ष में है। प्रत्येक वर्ष भारत में अनुमानित 18 लाख लोगों को टी.बी होता है तथा 4 लाख से अधिक लोग इससे हर साल मरते हैं। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि टीबी नियंत्रण कार्यक्रम को लेकर आम लोगों में खासकर गरीब तबकों में जागरुकता फैले और टीबी से संबंधित उचित डॉयगनोसिस ,पूर्ण इलाज तथा रोगी के पुर्नपरीक्षण के बारे में जानकारी को सर्वसुलभ बना कर इ स रोग को नियंत्रण में लाया जा सके। इसके लिए जरूरी है कि टीबी के इलाज प्रक्रिया के हर पहलू तथा इसके बेहतर प्रबंधन के बारे में पूरी जानकारी हो:


 

पहचान व लक्षण

 

टीबी के डायग्नोसिस यानि पहचान के लिए बाहरी लक्षण तथा कुछ जांच प्रक्रियाओं की मदद ली जाती है। क्लीनिकल, रेडियोलॉजिकल तथा बैक्ट्रियोलॉजिकल जांचों के बाद टीबी का प्रमाण सुनिश्चित होता है। टीबी बच्चों तथा व्यसकों में आम तौर पर पाया जाता है। बच्चों में पाए जाने वाले टीबी को प्राइमरी पुलमोनरी टीबी कहते हैं। यह संक्रमणकारी होता है। टीबी के आम बाहरी लक्षण हैं साधरणत:  दो हफ्ते से ज्यादा समय तक कफ होना। थूक बुखार आना, सांस लेने में कठिनाई, रात में पसीना, सीने में दर्द आदि। इसके अलाव लेबोरेट्री जांच में स्पूटम परीक्षण तथा कल्वर किया जाता है। टीबी शरीर के कई अंगों में हो सकत है और आज इसकी जांच के लिए आधुनिक संयंत्र भी हैं।

इलाज प्रक्रिया

 

टीबी के इलाज में प्रथम चरण में रोग को संक्रमणमुक्त बनाने की कोशिश की जाती है ताकि साथ रहने वावों और परिवार के सदस्यों में खतरा न रहे। रोग के लक्षण , रोगी की स्थिति और अन्य मापदंड़ो को ध्यान में रखते हुए इलाज के लिए दवा की खपराक तय की जाती है। टीबी के इलाज में इलाज प्रक्रिया के प्रभावी प्रबंधन के लिए रोगी का सतत निरीक्षण जरूरी है।

अपनी बिमारी तथा इलाज के बारे में रोगी को जागरुक बनाना तथा शिक्षित करना सबसे अहम है क्योकि अगर रोगी को स्वयं सभी जानकारियां होंगी तो दवा से लेकर अन्य प्रक्रियाओं में भी प्रभावित बेहतर होगी। इसके साथ ही , रोगी के परिवार के तत्काल सदस्य को जागरुक बनाना तथा शिक्षित करना जरूरी है, खासकर ऐसे व्यक्ति को जिसका परिवार पर ज्यादा असर हो और जिसको रोगी की देखभाल  के लिए उपयुक्त समझा गया हो। इन सबसे किसी कदर भी कम महत्व नहीं है इस बात का कि रोगी का इलाज थोड़ा लंबा तो चलता ही है साथ ही शारीरिक अस्वस्थता के लंबा खिंच जाने के कारण रोगी तथा परिवार वाले भी टूटने लगते हैं। जिससे इलाज प्रक्रिया में बाधा पहुंच सकती है। ऐसा देका गया है कि कमजोर आर्थिक स्थिति वाले रोगी तथा उनके परिवार  को टीबी के इलाज के दौरान आर्थिक संकंट के कारण इलाज को बीच में ही छोड़ देने या इसे अंशत: ही करवाने की समस्या आ जाती है। अत: ऐसे रोगी तथा उनके परिवारों को समाजिक आर्थिक सहायता तथा सलाह की सख्त जरूरत होती है।

 

संभावित जटिलतायें

कुछ मामलों में टीबी के रोगियों को विशेष देखभाल की जरूरत होती  है और संभवत: अस्पताल में भी भर्ती करवाने की जरुरत पड़ सकती है। ऐसे रोगियों पर इलाज के क्रम में लगातार नजर रखना बेहद जरूरी होता है। अगर टी.बी  के रोगी को सांस लेने में कठिनाई हो तो अस्पताल में भर्ती करवाना बेहतर होगा। इसके अलावा, शरीर में व्यापक रुप से फैले ट्यूबरकुलोसिस, विशेष रुप से अगर मस्तिष्क में फैलाव हो तो अस्पताल में भर्ती करवाना और लगातार मॉनीटरिंग बेहद जरुरी है। अगर टीबी ब्रेन, हार्ट अथवा स्पाइन को समाहित करता हुआ है तो भी लगातार देखभाल की जरूरत पड़ती है। कुछ ऐसे ही ममाले हो जाते हैं जब टीबी रोगियों को दवा कारगन नहीं हो पाती । मधुमेह तथा किडनी से ग्रसित रोग के साथ टीबी वाले रोगी भी ऐसे ही होते हैं। ऐसी तथा अन्य जटिलताओं वाले रोगी के लिए लगातार मॉनीटरिंग जरूरी है। कुछ मामलों में टीबी की दवाओं के कारण कुप्रभाव की आशंका होती है। इन कुप्रभावों तथा साइड इफेक्ट की नियमित मॉनीटरिंग जरूरी है। जैसे बच्चों में पुलमनरी टीबी , गर्भावस्था तथा मां के दूध पिलाने के दौरान टीबी, लीवर की समस्या के साथ टीबी के रोगी, किडनी की समस्या के साथ रोगी, एचआईवी इंफेक्शन के साथ रोगी तथा ड्रग प्रतिरोधी ट्यूबरकुलोसिस।       

ट्यूबरकुलोसिस से बचाव के लिए समाजिक जागरुकता की आवश्यकता है मगर इससे भी ज्यादा जरूरी है टीबी के इलाज की पूरी प्रक्रिया की जानकारी ताकि रोगी के इलाज में शत प्रतिशत प्रभावति सुनिश्चित हो सके और इलाज के प्रबंधन में चिकित्सक को रोगी तथा उसके परिवार का पूर्ण सहयोग मिल सकें। तभी हो सकेगा इस विकट रोग का प्रभावी इलाज संभव।

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